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मंगलवार, 15 अगस्त 2023

वीर सपूतों की चाह

 



वो भारत का सम्मान लिए, चला था

छोड़ कर घर, भारत का बेटा बना था

समर्पित होकर,  देश के लिए लड़ा था

न्यौछावर जीवन, माँ के लिए किया था 

माँ भारती का लाडला बन, आज लौटा था

सम्मान में तिरंगा तन से उसके लिपटा था


माटी का उसने तब, तिलक किया था

माँ को झुक कर तब, प्रणाम किया था

चौड़ा सीना लिए तब, वो आगे खड़ा था

आँखों में रोष तब, उसका हौसला बड़ा था 

रणभूमि पर तब, खूब कौताहुल मचा था

दुश्मन से लड़ने तब, हर जवान खड़ा था

 

उनके नापाक इरादों को, तब ध्वस्त किया था

गोलियों से भूनकर, ढ़ेर दुश्मनों को किया था

शत्रुओं को अपना दम उसने, खूब दिखाया था 

शत्रुओं के हर बढ़ते कदमों को, उसने रोका था 

खाकर गोली सीने पर, फिर भी अटल खड़ा था

हर सीमा प्रहरी का, मनोबल वो ही तो बना था


लड़ने का हौसला, उसका हर पल जिंदा था

अपनी शेष सांसो का भी, उसे सहारा था

जीत का लेकर भाव. स्वाभिमान प्रबल था

आँखों में उसकी, उभरता क्रोध प्रखर था

चुन चुन कर जिसने, शत्रुओं को मारा था 

आज रक्त रंजित, शरीर स्थिल वहाँ पड़ा था


इच्छा फिर भी, उसे अभी भी लड़ना था

शत्रुओं को अपने, नाकों चने चबवाना था  

घायल शरीर था, मौत को गले लगना था

उससे पहले ऊँचे शिखर, तिरंगा फहराना था

रंक्त रंजित हौसलों का, फैला तब यशगान था

जीत, माँ भारती को वीर सपूतों का उपहार है 

  


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

15 अगस्त 2023, दिल्ली 



बुधवार, 22 मार्च 2023

घर – घर होती जय जयकार



नवरात्र उत्सव आया, उत्साह उमंग घर – घर

हो रही घट स्थापना, बुलावा है माँ घर - घर

आस्था, भक्ति और विश्वास की लहर घर – घर

तेरे लिए ही माँ, अखण्ड जोत जली घर – घर


नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार

शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार


नौ दिन हैं ये शुभ दिन, तेरी महिमा है अपरंपार

भव्यता तेरी विशाल, शक्ति का तू है तो अवतार

इस भवसागर में कृपा तेरी, बन जाती है पतवार

हे सुखदात्री, हे कष्टहारिणी, नमन तुम्हें बारंबार


नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार

शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार


शैलपुत्री हिमराज सुता, ब्रह्मचारिणी दु:खहारिणी

चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता तुम ही जगतारिणी

कात्यायनी, कालरात्रि, तुम धैर्यदात्री, दैत्यसंहारिणी

महागौरी कुंदन सुमन, सिद्धिदात्री तुम पालनकारिणी


नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार

शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार


तेरी कृपा से सलिल, सरिस, पावन जीवन पायें

मन के कलुष, क्लेश, कुत्सित सोच दूर भगायें

विश्वास, आस्था, कामना संग, तुझ से जुड़ जायें

सुखी तन, मन, धन का, तेरा आशीर्वाद हम पायें


नव रूप सुसज्जित, तेरी महिमा का होता खूब विचार

शुभाशीष पाने माँ, घर - घर होती तेरी जय जयकार



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल - २२ मार्च, २०२३

सोमवार, 20 मार्च 2023

पहचान मुश्किल

 



हटी कुछ धूल, चेहरा धुंधला सा है

दर्पण में चेहरा, अपरिचित सा है

अंतर्मन कुछ, चित परिचित सा है

पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है


चाह भी, बदलने लगी है अब राह

पथराये चक्षु, निकलती बस आह

ग़मों की धरती, मिलती नहीं थाह

पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है


छिप रही किरण, उजाले की ओट से

सिमट रहा रिश्ता, अपनों की चोट से

बढ़ती रही दूरियां, मन उपजे खोट से

पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है


रास्तों के सुमन, मुरझा गए धूप में

सिमट रही आभा, उजालों की मौज में

गूँज रही सदा, खोखले से आवरण में

पहचान मुश्किल, बदला स्वरूप है


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 20/3/2023



शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

मन की बात

 




तेरे मेरे मन की यहाँ होती बात
देश प्रेम की यहाँ होती बात
दिन प्रतिदिन की यहाँ होती बात
मोदी जी करते हमसे मन की बात
मन की बात, मन की बात

सहज और सरल ढंग से समझाते
हर मुद्दों पर देश की सोच बताते
जनमानस को इसमें शामिल करते
मोदी जी करते हमसे मन की बात
मन की बात, मन की बात

हर भाषा हर राज्य की आती बात
चेतना और चिंतन की होती बात
संस्कृति, संस्कार से जुड़ने की बात
मोदी जी करते हम से मन की बात
मन की बात, मन की बात

नई प्रतिभाओ से मिल बनती बात
देश, विदेश और इतिहास की बात
प्रकृति सरंक्षण व संवर्धन की बात
मोदी जी करते हम से मन की बात
मन की बात, मन की बात

प्रेरक प्रसंगो से जोड़ते सबको
कर्तव्य पथ का मार्ग समझाते
श्रेष्ठ भारत का गौरव हमें बताते
मोदी जी करते हम से मन की बात
मन की बात, मन की बात

- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल
१०/२/२०२३
( "मन कि बात प्रतियोगिता" जिंगल हेतु लिखा गया - गीत प्रस्तुति वसुंधरा रतूड़ी )
https://youtube.com/shorts/f2FYTtR0MaE?si=EnSIkaIECMiOmarE

शनिवार, 31 दिसंबर 2022

शेष रह गया जो ...

 


अलविदा हो रहा वर्ष
अंत में कुछ लिखना चाहता हूँ
पर आरम्भ कहाँ से करूँ 
सभी कुछ तो 
अंत की ओर अग्रसित है
जिज्ञासा प्रारम्भ है 
शास्वत सत्य तो अंत ही है 
और अंत में शेष बचता क्या है? 

अब तक ‘मैं’ लिखता रहा 
भावो को शब्द देता रहा
और ‘मैं’ लिखता रहा  
कुछ कहा और अनकहा भी
समाज भी और देश भी
संस्कृति और संस्कार भी
हास्य भी और परिहास भी 
सुख भी और दुःख भी
विकास भी और विनाश भी
प्रकृति भी और प्रलय भी
हिंदी प्रेम भी और मातृभाषा प्रेम भी
सत्य भी और असत्य भी  
प्रेम भी और विरह भी
विश्वास भी और अविश्वास भी 
आचार भी और विचार भी
अपमान भी और सम्मान भी
अंतर भी और समानता भी
मन का भी और अनमना भी
तर्क भी और कुतर्क भी
फिर भी कुछ रह गया शेष

लिखता रहा, गुणता रहा 
संवेदनाओं को भुनाता रहा 
अंगुलियाँ सब पर उठाता रहा 
नैतिकता दूसरों को पढ़ाता रहा
स्वयं को ‘मैं’ आगे बढ़ाता रहा
प्रश्न तुम पर खड़ा करता रहा
नाम ‘प्रतिबिम्ब’ लिखता रहा 
नाम फिर भी अपना तलाशता रहा
वर्चस्व अपना सदैव ढूंढता रहा 

नववर्ष में, नए जोश संग सोच लिखूँगा
नव चेतन मन की, बात नई लिखूँगा
आज जो लिखूँगा, नि:संकोच लिखूँगा
जो कहा वह लिखूँगा, पुन: लिखूँगा
रह गया जो शेष, वह सब लिखूँगा
शून्य हो जाने तक, ‘मैं’ पूर्ण लिखूँगा


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 31 दिसम्बर. 2022


रविवार, 25 दिसंबर 2022

आवरण



मेरा सनातन व्यक्तित्व, कुछ बदला सा है 
इस पर पाश्चात्य का रंग, बेहिसाब चढ़ा है 
घट रहा अपनत्व, अब छूट रहा समर्पण है 
आज हकीकत में, मेरा यही तो आवरण है 
मेरे अपने, संस्कृति और संस्कार खो रहे हैं 
इसआवरण के नीचे, अपनी मौत मर रहे है 
परम्परा आक्रोश की, अब बुझदिल हो गई है 
प्रतिशोध मेरा, अब शस्त्र विहीन हो गया है 
नैतिकता का दामन, अब छूटता जा रहा है 
प्रमाणिकता, अब परिहास बन कर रह गई है

आकांक्षाओं और स्वार्थ से, पोटली भरी है 
गठरी पाप की, रोज भरती ही जा रही है  
हमारी विरासत धीरे - धीरे सिमट रही है 
समाज और देश, मौन धारण किये हुए हैं 
धर्म और कर्म अब सियासत बन चुका है
तेरे और मेरे बीच में, कोई तीसरा खड़ा है 
दिखता है, दिखाता है और शोर मचाता है 
ये तीसरा आदमी, हमारी जड़े खोद रहा है 
संवेदनाओं पर, सबकी विराम लग चुका है 
आदर, मान व सम्मान अब बिक चुका है 

संस्कृति, संस्कार और साहित्य धरोहर है 
प्रेम, शौर्य और बलिदान हमारी पहचान है
जीवंत संस्कृति धारा, करती अनुप्राणित है 
विविधता में एकता, अनुबंधन स्थापित है 
राष्ट्र प्रथम का भाव ही, सच्ची देशभक्ति है
हमारा सामर्थ्य व योग्यता, राष्ट्रिय शक्ति है 
सत्ता व शक्ति को, वैधता से जोड़े रखना है 
अधिकार व दायित्व का, अंतर समझना है 
आज प्रतिबिम्ब का, बस इतना ही कहना है 
हटा नकली आवरण, कृतज्ञता को बढ़ाना है


- प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, 25 दिसम्बर 2022


मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

रिश्तों का आधार




 

रिश्तों का अनकहा सच
आँखों का पानी बतलाता है  
सच रिश्तों का फिर भी
अपनी कलम से लिखता हूँ 
बनते रिश्तों में प्रेम अनायास ही 
भीनी-भीनी खुश्बू बिखेरने लगता है 
रिश्ते बनते ही प्रेम छलकने लगता है 
अपनों की शान में शब्दकोष के 
समानार्थी शब्द हर कोने-कोने से 
अविरल निकलने लगते हैं 
परिभाषाओं के पहाड़ 
अलंकारो और विशेषण से 
अलंकृत हो कर सजते हैं 
विश्वास व् सरंक्षण करते शृंगार
सच कहूँ इस प्रकाट्य अवधि में
नि:स्वार्थ सा लगता है हर भाव
समर्पण होता तन, मन, धन
और संवेदनाओं से पुरुस्कृत लोग 
परमार्थ सा पुण्य कमा लेते हैं 


हम फर्ज रिश्तों का निभाते हैं
खुद पर कर्ज समझ तोलते हैं 
लेकिन इसी रिश्ते में ‘कुछ’
स्वार्थ के शब्दों से, बोली लगाते हैं 
कुछ पीठ पर वार कर जाते हैं
देखता हूँ मोम से पिघलते रिश्ते 
रिश्तों की तपिश में जलता मजबूर धागा  
शायद स्वार्थ हित से ओत प्रोत नहीं जानते 
शून्य हो जाता है सब किया हुआ और
पुण्य जितना भी अब तक बटोरा हुआ 
जिस दिन सब जानते हुए भी 
परार्थी से स्वार्थी बन जाते है लोग  


नए रिश्तों की तलाश में भी
पुराने रिश्ते तोड़ जाते हैं लोग  
कुछ बोझ का करा अहसास 
कुछ बना कर लम्बी दूरी  
रिश्ते को तिलांजलि देते लोग
कुछ राग अपनत्व का गाते-गाते 
द्वेष भाव पर उतरते अपने ही लोग 
रिश्तों की गरिमा की आंच अब
हर मौसम में ठंडी होने लगी है 
इन सबसे होता यही चरितार्थ है 
कि रिश्तों का आधार ही स्वार्थ है    
है कड़वा ‘प्रतिबिम्ब’, पर सत्य है
रिश्तों में उभरता यही पूर्ण सत्य है
 
-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, १८ अक्टूबर, २०२२ 

गुरुवार, 1 सितंबर 2022

हिन्दी साहित्य भारती "अंतरराष्ट्रीय" - कार्यकारिणी की वार्षिक बैठक (झाँसी, उत्तर प्रदेश )

 


हिन्दी साहित्य भारती "अंतरराष्ट्रीय" की केन्द्रीय कार्यकारिणी/कार्यसमिति की वार्षिक बैठक - अपने उद्देश्यों की पूर्ति व् संस्था के विस्तार हेतु  २७-२८ अगस्त २०२२ को झाँसी के "होटल द मारवलस" सफलता पूर्वक सम्पन्न हुई. अंतरराष्ट्रीय स्तर का यह आयोजन आदरणीय केन्द्रीय अध्यक्ष डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी के नेतृत्व में, हिन्दी साहित्य भारती के केन्द्रीय कार्यालय प्रभारी श्री निशांत रवीन्द्र शुक्ल जी व् टीम के द्वारा शानदार प्रयासों, स्वागत, सम्मान व् आतिथ्य सत्कार के साथ इस बैठक को अविस्मरणीय बना दिया. देश - विदेश से आये हुए सभी पदाअधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से मिलना हुआ.  





झाँसी में प्रवेश करते ही हिन्दी साहित्य भारती के पोस्टर बैनर आपका स्वागत करते हुए प्रतीत हो रहे थे. पूरा शहर मानो "हिन्दी साहित्य भारती" अंतरराष्ट्रीय के देश विदेश से आ रहे अतिथियों का दोनों बाहें फैलाकर आवाभगत कर रहा हो. एक उत्सव सा माहौल झाँसी की फिजाओं में नज़र आ रहा था. ऐसे में हिन्दी साहित्य भारती के साधक के रूप में गर्व की अनुभूति हो रही थी. 

  







प्रथम दिवस बैठक का शुभारम्भ दीनदयाल सभागार में हुआ जिसमें सभी को महामंडलेश्वर निरंजनी अखाडा, पू. स्वामी शास्वतानंद जी गिरी, पूर्व महामहिम राज्यपाल कपरन सिंह सौलंकी, पूर्व महामहिम डॉ शेखर दत्त जी, राष्ट्रीय संयोजक ( प्रज्ञा प्रवाह) संघ प्रचारक श्री जे नन्द कुमार जी, राष्ट्रीय अध्यक्ष  डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी का सानिंध्य प्राप्त हुआ.  इस सत्र का संचालन डॉ रमा सिंह जी व् सुश्री अचला भूपेन्द्र जी ने किया. 










इसके तत्पश्चात सभी अतिथियों द्वारा राम - लक्ष्मण की परम्परा के वाहक राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त व् सियाशरण गुप्त जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि की. इसके साथ साहित्य सदन परिवार द्वारा सभी अतिथियों का अभिनंदन किया गया. झाँसी की शान, वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई के किले, संग्रहालय व् रानी महल का भ्रमण करने का मौका भी मिला. 



होटल द मारवलस में भोजन के उपरांत द्वितीय सत्र में पिछले अधिवेशन ( हंस राज कालिज ,दिल्ली में आयोजित) में कार्यवाही की पुष्टि आदरणीय आचार्यदेव जी द्वारा की गई. संगठन के विधान, उद्देश्य व् हमारी भूमिका को डॉ. रवीन्द्र शुक्ल जी द्वारा बताया गया. आदरणीय श्री जे नन्द कुमार जी ( राष्ट्रीय संयोजक प्रज्ञा प्रवाह ) का इस सत्र में मार्गदर्शन व् इस यज्ञ में उनके सहयोग का आश्वासन मिला. संचालन डॉ ज्योति गोगिया जी ने व् परिचय डॉ भारती मिश्र जी द्वारा किया गया. 



तृतीय सत्र में संचार माध्यमो का उपयोग पर चर्चा रही. संचालन डॉ सुनीता मिश्र जी व् परिचय सुश्री प्रतिभा त्रिपाठी जी ने दिया. विषय प्रवर्तन डॉ आनंद उपाध्याय जी द्वारा किया गया. मुख्य वक्ता प्रो. संजय कुमार द्विवेदी जी महानिदेशक जनसंचार संसथान, भारत सरकार थे. उन्होंने संचार माध्यम की उपयोगिता को लेकर कुछ आंकड़ो के द्वारा इसकी सफलता पर प्रकाश डाला और हिन्दी साहित्य भारती को सुझाव व् शुभकामनायें दोनों प्रेषित की.


रात्रि भोजन के पश्चात् कवि सम्मलेन का कार्यक्रम रहा जिसमे उत्कृष्ट व् ओजस्वी कवियों ने कविता पाठ किया. कार्यक्रम लगभग २ बजे समाप्त हुआ.  


२८ अगस्त को पहले सत्र में वित्तीय प्रबन्धन पर जानकारी व् चर्चा रही. केन्द्रीय कोषाध्यक्ष श्री मयूर गर्ग ने हिन्दी साहित्य भारती न्यास के वित्तीय प्रबंधो पर रोशनी डाली, वित्तीय स्थिति व् भविष्य की रुपरेखा से अवगत कराया.  वक्ता के तौर पर डॉ रविन्द्र भारती ( पूर्व कुल सचिव), डॉ राजीव शर्मा जी (पूर्व आई ए एस) ने सुझाव व् प्रश्नों के उत्तर सहित समाधान भी दिए.



द्वितीय सत्र में संगठन विस्तार व् कार्यक्रमों की रूप रेखा पर चर्चा हुई. इस सत्र का सञ्चालन डॉ वागीश दिनकर जी ( अध्यक्ष, उत्तरप्रदेश) ने किया व् परिचय डॉ अजीत सिंह ( महामन्त्री, बिहार) ने किया. वक्ता व् विषय प्रवर्तन हेतु विदेश कार्यकारिणी के महामन्त्री श्री प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल ने अतिथियों को संबोधित किया व चर्चा प्रारम्भ की. हर स्तर पर अधिवेशन, कार्यकारिणी के सदस्यों के हर स्तर पर परिशिक्षण हो यह बात मुख्य रूप से उभर कर आई.

 

तृतीय सत्र में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से अनुमोदन किया गया. इसके प्रस्तावक रहे डॉ करुणाशंकर उपाध्याय जी रहे व् सभी राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा इसका अनुमोदन किया गया.  संचालन श्री जगदीश सोनी जी द्वारा  व्  प्रो उमापति दीक्षित जी का सानिंध्य मिला.

भोजन के पश्चात दीक्षांत समारोह का आयोजन रहा. इसमें मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार में रक्षा राज्य मंत्री व् पर्यटन मंत्री श्री अजय भट्ट जी रहे. मंच पर अन्य अतिथि पूर्व राज्यपाल डॉ शेखर दत्त जी, हिन्दी अकादमी गुजरात के अध्यक्ष पद्मश्री सम्मानित डॉ विष्णु पांड्या जी. दुबई से हिन्दी साहित्य भारती के संयोजक श्री भूपेन्द्र कुमार जी, मोरिशस से हिन्दी साहित्य भारती के अध्यक्ष डॉ हेमराज सुंदर जी, केन्द्रीय उपाध्यक्ष डॉ बुद्धिनाथ मिश्रा जी, केन्द्रीय अध्यक्ष डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी उपस्थित रहे.

डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी ने अजय भट्ट जी व् मंचासीन अतिथियों का स्वागत, अपनी राजनितिक यात्रा के अनुभव व् हिन्दी साहित्य भारती के उदय से लेकर वर्तमान तक की विकास यात्रा व् उद्देश्यों को सबके समक्ष रखा. अजय भट्ट जी ने हिन्दी साहित्य भारती के उद्देश्यों व् डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी के नेतृत्व के साथ उन्होंने हर संभव प्रयास व् साथ निभाने की बात कही. सभी साधको धन्यवाद किया. आभार ज्ञापन डॉ विनोद मिश्र ( केन्द्रीय उपाध्यक्ष ) जी ने दिया.

दीक्षांत समारोह में ही संकल्प समारोह का आयोजन किया गया था जिसमें सभी उपस्थित हिन्दी साहित्य भारती के पदाधिकारियों ने संस्था व् उसके उद्देश्यों के लिए निरंतर यथा संभव कार्य करने का संकल्प लिया. इस तरह सफल आयोजन झाँसी में सम्पन्न हुआ. 

 




झाँसी की यह बैठक अकल्पनीय, अनुप्रेरक व उद्देश्यों के अनुरूप सफल रही. इसका श्रेय केन्द्रीय अध्यक्ष डॉ रवीन्द्र शुक्ल जी, निशांत रवीन्द्र शुक्ल, शुक्ल जी के परिवार के सभी सदस्यों, होटल द मारवलस व्  कार्यालय के सभी स्वयंसेवको को जाता है. सभी का हार्दिक आभार. 



प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल 

महामन्त्री (विदेश कार्यकारिणी)



                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           





गुरुवार, 25 अगस्त 2022

रिश्ते और रास्ते





सच दुनिया का, रिश्तों में ही दुनिया है
कड़वा सच दुनिया का, इन रिश्तों में है

कभी इन रिश्तों में, रास्ते बदल जाते हैं
कभी इन रास्तों में, रिश्ते बदल जाते हैं

बाहर से रिश्ता, हर शख्स निभाता रहा
अंदर से रिश्ता, हर पल वो काटता रहा

रिश्तों में रिश्ते, मैं निभाता ही चला गया
रिश्ते में रिश्ता. दम तोड़ता ही चला गया

यहाँ कौन अपना कौन पराया, बात सही है
रिश्ते बनते व बिगड़ते हैं, हकीकत यही है

खोले थे राज जिनसे, उसी ने की मुखबरी है
शिकायत करूं कैंसे, रिश्तों की मजबूरी है

चेहरों में ले मिठास, खंजर दिल में होते हैं
कुछ रिश्तों में तो, यह मंजर आम होते हैं

साजिश समय की ‘प्रतिबिम्ब’, बड़ी गहरी है
रिश्ते और रास्तों की, कहानी अभी अधूरी है

-प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल, २५ अगस्त २०२२

बुधवार, 24 अगस्त 2022

निभाया करो

 




निभाया करो

ख्वाब जो देखे थे, उनसे बात किया करो
पल–पल जीवन , सोच तुम जिया करो

रहकर आस-पास, ओझल न रहा करो
प्रेम का हर रूप, तुम महसूस किया करो

गलतफहमियाँ, दरमियाँ में न पाला करो
अच्छा लगता है, मन से बात किया करो

अपनों को कभी, अनदेखा न किया करो
शब्द दो ही सही, पर बोल तुम लिया करो

महकेगा ये जीवन, अहसास किया करो
चाहत की आस, बेझिझक तुम कहा करो

दर्पण के सामने, सोलह शृंगार किया करो
देख रहा हूँ मैं तुम्हें, यूं भान तुम किया करो

प्रेम का मेरा हर गीत, होंठों में रखा करो
याद जब भी आये, गुनगुना तुम लिया करो

दिल से दिल की बात, समझा-कहा करो
“प्रतिबिम्ब” से रिश्ता, तुम यूं निभाया करो

- प्रतिबिम्ब २४ अगस्त, २०२२ 





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